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नज़्म
हलवे के लिए फिर आज भी हम इक आस लगाए बैठे हैं
जो बात ज़बाँ पर ला न सके वो दिल में छुपाए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
मुझे रंगून से जब दावत-ए-शेर-ओ-सुख़न आई
तबीअत फ़ासले और वक़्त के चक्कर से घबराई
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
लो ईद आई लो दो पुलिए मैदान में भर बाज़ार लगा
हर चाहत का सामान हुआ हर ने'मत का अम्बार लगा